पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१८२

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१६८ अभिधर्मकोश अतः एक पृथक् धर्म है जो उन्म और विज्ञान का आधार है, जो सन्तान की स्थिति का हेतु है और जिसे आयु कहते हैं। (१) सौत्रान्तिक जीवितैन्द्रिय (जीवित, आयु) के द्रव्यतः अस्तित्व का प्रतिषेध करते हैं। १. सौत्रान्तिक--यदि आयु उष्म और विज्ञान का आधार है तो उसका कौन आधार है ? वैभाषिक-इसका आधार उज्म और विज्ञान है। सौत्रान्तिक-यदि आयु, उष्म और विज्ञान यह तीन धर्म एक दूसरे के आधार हैं और इस अन्योन्य आधार से सन्तान की प्रवृत्ति होती है तो इनका अन्त कैसे होगा ? कौन [२१६] पहले निसद्ध होगा जिसके निरोध से अन्य का भी निरोध हो ? क्योंकि यदि इनमें से एक का निरोध पहले नहीं होता तो यह तीन धर्म नित्य होंगे और इनकी अनिवृत्ति का प्रसंग होगा। वैभाषिक-आयु का आधार कर्म है; कर्म से आय का आक्षेप हुआ है और आयु की स्थिति उतने काल के लिये होती है जितने काल के लिये कर्म का आक्षेप होता है । सौत्रान्तिक-यदि ऐसा है तो क्यों नहीं स्वीकार करते कि उष्म और विज्ञान का आधार फर्म है और आयु का कोई प्रयोजन नहीं है । वैभाषिक-जिसका कर्म आधार है वह विपाक-स्वभाव है । यदि विज्ञान का आधार कर्म होता तो गर्भावस्था से लेकर मरणपर्यन्त सर्व विज्ञान विपाक होता जो अयथार्थ है । अतः आयु जिसका आधार कर्म है उष्म और विज्ञान का अवश्य आधार है । सौत्रान्तिक-अतः कहिये कि कर्म उष्म का आधार है और उष्म विज्ञान का आधार है। आयु निष्प्रयोजन है । वैभाषिक-आयु आवश्यक है क्योंकि आरूप्यधातु में उष्म का अभाव है। यदि आयु न हो तो आरूप्यधातु में विज्ञान का क्या आधार हो ? सौत्रान्तिक-~आरूप्यधातु में विज्ञान का आधार कर्म है । वैभाषिक---आपको क्या मत-परिवर्तन का अधिकार है ? कभी आप मानते हैं कि विज्ञान का आधार उष्म है, कभी कर्म को इसका आधार मानते हैं।' -पुनः आपने इसे स्वीकार कर लिया है । इस दोष के परिहार की आवश्यकता है कि गर्भावस्था से लेकर भरणपर्यन्त सर्व विज्ञान विपाक है । अतः आयु का अस्तित्व है और यह उष्म और विज्ञान का आधार है । ४ विभाषा, १५१, ८ : विभज्यवादिन् इस सूत्र को यह सिद्ध करने के लिये उद्धृत करते हैं कि यह तीन धर्म,आयु, उपम और विज्ञान, सदा युगपत् होते हैं। इनफा अविनिर्भाग है। किन्तु वसुः मित्र का कहना है कि सूत्र आश्रय-सन्तान को लक्ष फरता है...आयुसंस्कारस्कन्ध धर्मधातु धर्मायतन में संग्रहीत है। उपम रूपस्कन्ध और स्प्रष्टव्यायतन में विज्ञान विज्ञानस्कन्ध, सप्तधातु और मन-आयतन में : अतः सूत्र का अक्षरार्थ नहीं लेना चाहिये । पुनः यदि यह तीन धर्म सदा युगपत् होते हैं तो आरूप्यधातु में उष्म होगा; असत्वाख्य में आय और विज्ञान होंगे और असंजिसमापत्ति में विज्ञान होगा। शुभआन्-चाऊ : "हमने जो फहा है उसके अतिरिक्त--आपने क्या कहा है ?-इस दोष के परिहार के लिये..." .