पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२१५

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२०२ अभिधर्मकोश ५२ सी-डी. किन्तु नवभूमिक-मार्ग अन्योन्य का सभागहेतु है । मार्ग इस अर्थ में नवभूमिक है-अनागम्य, ध्यानान्तर, चार मूलध्यान, प्रथम तीन अधर आरूप्य (६.२० सी)-कि योगी समापत्ति की इन ९ अवस्थाओं में विहार कर मार्ग की भावना कर सकता है। तुल्य भूमि-भेद में मार्ग-धर्म मार्ग-धर्म के सभागहेतु हैं। वास्तव में इन भूमियों में मार्ग आग- न्तुक सा है; यह भूमियों के धातुओं में पतित नहीं है। कामावचरी, रूपावचरी, आरूप्यावचरी तृष्णा मार्ग को स्वीकृत नहीं करती। चाहे जिस भूमि का संनिश्रय लेकर योगी मार्ग की भावना करता है मार्ग समानजातीय रहता है । अतः मार्ग मार्ग का सभागहेतु है । सर्व मार्ग सर्व मार्ग का सभागहेतु नहीं होता। जिस भूमि में इसकी भावना होती है उसका संप्रधारण नहीं करना है किन्तु मार्ग के स्वलक्षणों का विचार करना है । ५२ डी. मार्ग सम या विशिष्ट मार्ग का सभागहेतु है ।' न्यून मार्ग का नहीं क्योंकि मार्ग सदा प्रयोगज है। [२६३] न्यून, सम, विशिष्ट मार्ग इन आख्याओं का हम व्याख्यान करते हैं । जब अतोत या प्रत्युत्पन्न दुःखे धर्मज्ञानक्षान्ति (दर्शनमार्ग का प्रथम क्षण, ६.२५ डी) उसी प्रकार अनागत' क्षान्ति का सभागहेतु होती है तब कार्यमार्ग कारणमार्ग के सम होता है । जब यह क्षान्ति दुःखे धर्नज्ञान (दर्शनमार्ग का द्वितीय क्षण, ६.२६ ए) का सभागहेतु होती है तब कार्यमार्ग कारण मार्ग से विशिष्ट होता है। एवमादि यावत् अनुत्पादज्ञान (६.५०) जो अपना विशिष्ट न होने से केवल सममार्ग अर्थात् अनागत अनुत्पादज्ञान का सभागहेतु हो सकता है । २. विस्तार करते हैं। दर्शनमार्ग, दर्शनमार्ग भावनामार्ग और अशैक्षमार्ग का सभाग- हेतु है; भावनामार्ग भावनामार्ग और अशैक्षमार्ग का; अशैक्षमार्ग सम या विशिष्ट अशैक्ष- मार्ग का। ३. सर्व मार्ग का अभ्यास मृद्विन्द्रिय या तीक्ष्णेन्द्रिय योगी कर सकता है : मृदु-तीक्ष्णेन्द्रिय-मार्ग का सभागहेतु है । तीक्ष्णेन्द्रियमार्ग तीक्ष्णेन्द्रियमार्ग का ही सभागहेतु है । अतः श्रद्धानुसारिमार्ग (६.२९) ६ का, श्रद्धाधिमुक्तमार्ग (६.३१) चार का, समय- विमुक्त-मार्ग (६.५६-७) दो मार्गो का सभागहेतु है । धर्मानुसारिमार्ग (६.२९) तीन का, दृष्टिप्राप्तमार्ग (६.३१) दो का और असमयविमुक्तमार्ग (६.५६-७) एक मार्ग का सभागहेतु है । मृद्विन्द्रिय-मार्ग १ अन्योन्यं नवभूमिस्तु मार्गः [च्या २०३.१३] २ समविशिष्टयोः ॥ [व्या २०३.२६] । श्रद्धानुसारिन्, श्रदाधिमुक्त और समयविमुक्त के मार्ग मृद्विन्द्रिय योगी के दर्शन, भावना (= शैक्ष) और अशैक्ष मार्ग हैं । धर्मानुसारिन् दृष्टिप्राप्त और असमपविमुक्त के मार्ग यथाक्रम तीक्ष्णेन्द्रिय योगी के यही मार्ग हैं। 1