पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२३

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a अभिधर्मसोश 3 सास्त्रवानानषा धर्माः संस्कृता भार्गवर्जिताः। सालवा आस्रवास्तेषु यस्मात्समनुशेरले ॥४॥ वह धर्म कौन हैं जिनका प्रविचय अभिधर्म में उपदिष्ट है ? ४. ए---धर्म सास्त्रव और अनासव हैं। सासव धर्म कौन हैं? ४. वी-डो-मार्ग को वर्जित कर अन्य संस्कृत धर्म सास्रव है । वह सास्रव हैं क्योंकि वहाँ आस्रव प्रतिष्ठा-लाभ करते हैं। [७] संस्कृत धर्म का अर्थ १.७ ए, २.४५ सी-डी में है। आत्रयों पर ५. ४० देखिए। यद्यपि आर्यमार्ग या असंस्कृत धर्म मानव-विशेष के, यथा मिश्यादृष्टि के, आलम्बन हो सकते हैं किन्तु इससे आर्यमार्ग या यह धर्म सासव नहीं होते, क्योंकि आनंद सास्त्रवानानवा धर्माः व्याख्या १२.९] ४ संस्कृता भार्गवजितरः । सानवा भालवास्तेषु यस्मात् समनुवोरते ॥ ध्याख्या १२.२०१ १३.१] मार्ग-संगृहीत संस्कृत धर्मो को बर्जित कर अन्य संस्कृत धर्म सास्रव कहलाते हैं। यह कैसे और क्यों 'सास्तव है? (१) हम यह नहीं कह सकते कि जो आत्रयों से संप्रयुक्त' हैं, वह सास्रव हैं क्योंकि केवल क्लिष्ट चित्त-चत्तों का आत्रवों से संप्रयोग होता है (१.२३) । (२) हम यह नहीं कह सकते कि जिनका आलवों के साथ उत्पाद (सहोत्पाद) होता है वह सालय हैं। उस पक्ष में न वाह्य धर्म (१.३९ ए) सालब होंगे और न उस सत्व के पांच उपादान-स्कन्ध (१.८) जिनकी सन्तति में श्लेशों का समुदाचार इस समय नहीं हो रहा है। (३) हम नहीं कह सकते कि आलवों के जो आश्रय हैं, वह सालव हैं, क्योंकि ६ आध्या- त्मिक आयतन हो आलवों के आश्रय होते हैं। (४) हम यह नहीं कह सकते कि जो आवबों के आलम्बन हैं वह सात्रव है। इस विकल्प में निर्वाण (निरोधसत्य) भी सालव होगा क्योंकि निर्वाण के विषय में भी मिथ्यावृष्टि हो सकती है। इस विकल्प में जब अध्वं भूमि को अधर भूमि के आस्रव आलम्बन बनायंगे तब अर्व भूमि भी सास्रव होगी। (५.१८ में इन दृष्टियों का विरोध किया है।) अतः आचार्य कहते हैं कि एक धर्म 'सास्त्रब' कहलाता है जब आस्रव वहां अनुशयन करते हैं (अनुशेरते) अर्थात् वहां पुष्टि-लाभ करते हैं (पुष्टि लभन्ते) अयवा वहां प्रतिष्ठा लाभ करते हैं यथा पादतल भूमि पर प्रतिष्ठित हो सकता है, तप्त उपल पर नहीं । 'सास्त्रच' धमरे में पुष्टि और प्रतिष्ठा का लाभ कर अनुशय की बहुलता होती है (सन्तायन्ते) । एक दूसरे मत के अनुसार जैसे यह कहने के लिए कि "यह आहार मुझे पथ्य है" "यह आहार मेरे अनुकूल है" (अनुगुणीभवति) लोक में कहते हैं कि "यह आहार मुझे लगता है (मम अन्मोते) उसी प्रकार वास्तव "इन धर्मों में अनुशयन करते हैं" "इन धर्मों के अनुकूल हैं।" अतएव उन धर्मों को तालव कहते हैं जिनके अनुकूल आस्रव है अर्थात् मार्गजित संस्कृत्त । वास्तव में आलब ले अभिप्यन्दित कर्म से व्याख्या १३.७] संस्कृत नितित होते हैं। अतएव आलय उनके अनुकूल है [व्याख्या ५.१, १८, २९, ३९, ४० देखिए । निकाय इसपर एकमत नहीं है कि बुद्धकाय सानव है या नहीं। (१.३१ डी देखिए )