पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१० अभिधर्मकोश प्रतिसंख्यानिरोधो यो विसंयोगः पृथक् पृथक् । उत्पादात्यन्तविनोऽन्यो निरोधोऽप्रतिसंख्यया ॥६॥ ६.ए-बी--पृथक् पृथक् 'विसंयोग' प्रतिसंख्यानिरोध (२.५५) है। सासव धर्मों से विसंयोग (२.५७ डी) प्रतिसंख्यानिरोध (२. ५५) या निर्वाण है । [९] प्रतिसंख्यान या प्रतिसंख्या से एक प्रज्ञाविशेष का, अनानव प्रज्ञा का, दुःखादि आर्यसत्यों के अभिसमय (साक्षात्कार) का ग्रहण होता है । इस प्रज्ञाविशेष से जिस निरोध को प्राप्ति होती है वह प्रतिसंख्या निरोध कहलाता है। हम 'प्रतिसंख्याप्राप्य निरोध' कह सकते थे किन्तु मध्यम पद (प्राप्य) का लोप होता है यथा 'गोयुक्त रथ' न कह कर 'गोरथ' कहते हैं । (गोरथ - गोयुक्त रथ) क्या यह समझना चाहिए कि सब सास्रव धर्मों के लिए एक ही प्रतिसंख्यानिरोध होता है ? नहीं । प्रत्येक विसंयोग पृथक्-पृथक् प्रतिसंख्यानिरोध है । जितने संयोग-द्रव्य होते हैं उतने ही विसंयोग-द्रव्य होते हैं। यदि अन्यथा होता, यदि प्रतिसंख्यानिरोध एक ही होता, तो जिस पुद्गल ने दुःखसत्य-दर्शन से प्रहातव्य' क्लेशों के निरोध का लाभ किया है, उसका साक्षात्कार किया है, उसको समुदयादि दर्शन और भावना से प्रहातव्य क्लेशों के निरोध की प्राप्ति भी साथ-साथ होती । उसके लिए शेष क्लेशों के प्रतिपक्षभूत मार्ग की भावना व्यर्थ होगी (विभाषा ३२, ६) । किन्तु क्या यह नहीं कहा है कि " निरोध असभाग है "? इसका यह अभिप्राय नहीं है कि निरोष एक है अथवा एक निरोध दूसरे निरोध का सभाग नहीं हो सकता। इसका यह अर्थ है कि निरोध का कोई सभाग-हेतु नहीं है और न यह किसी दूसरे धर्म का सभाग-हेतु है' (२.५२) (१०) ६. सी-डी--एक अन्य निरोध जो उत्पाद में अत्यन्त विघ्नभूत है अप्रतिमख्या- निरोध कहलाता है। - - १ ४ प्रतिसंख्यानिरोको यो विसंयोगः पृथक् पृथक् । कथावत्यु, १९.३ के शास्त्रार्थ से तुलना कीजिए। सर्वास्तिवादिन का मत है कि 'क्लेश-विसंयोग' 'क्लेश या अनागत दुःख का निरोध' (विसं- योग, निरोध) वस्तुसत्, धर्मसत्, द्रव्य है। 'विसंयोग' हेतुजनित नहीं है : यह नित्य है। प्रतिसंख्या (सत्याभिसमय) से विसंयोग को प्राप्ति का (२.३६ बी) लाभ होता है। भगवत् सानव द्रव्य को स्तम्भस्थानीय बताते हैं अर्थात् यह वह द्रव्य है जिससे रागद्वेषादि फ्लेश संप्रयुक्त हो सकते हैं। क्लेश या संयोजन रज्जुस्थानीय है। पुद्गल बलीवर्दस्थानीय है [व्याख्या १६.२२ 1 (संयुत्त, ४.२८२ से तुलना कीजिए) । सानव द्रव्य 'संयोग- यस्तु 'सनोजनिय' है। प्रतिसंख्यानिरोध कई हैं, वसुमित्र, महासांधिक ३४ वां वाद-- विभाषा का हवाला ३१, पृ.१६१, काल० ३, पृ. १६२, काल० १ हैं। २ धर्मदिना से उसके पूर्व भर्ता गृहपति विशाख ने पूछा : किं सभाग आर्ये निरोधः? उसने उत्तर दिया : असभाग आयुष्मन् विशाख । [व्याख्या १६.२८] (मध्यमागम, स्किकुलस १८, फ्रोलियो ३, विमापा ३१.१६) मझिम, १.३०४ से तुलना कीजिए : निव्यानस्स पनय्ये कि पतिभागो. 1 उत्पादात्यन्तविघ्नोऽन्यो निरोघोऽप्रतिसंस्थया व्याख्या १७.८]