पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/४२९

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तृतीय कोशस्थान : लोक निर्देश ४२१ वैशेषिक-~यद्यपि वीजों का आहरण होता हो तथापि हमको वीज अंकुरादि से अंकुर, काण्डादि की स्यूलभावों की उत्पत्ति इष्ट नहीं है (क्योंकि वीज संकुरादि केवल निमित्त कारण है, समवायि कारण नहीं है); हम कहते हैं कि अंकुरादि अपने अवयवों से उत्पन्न होते हैं और वह अवयवपर्याय से अपने अवयवों से उत्पन्न होते हैं। एवम् यावत् अत्यन्त क्षुद्र भाग परमाणुओं से उत्पन्न होते हैं। २११] वौद्ध–अतः अंकुर के प्रति वीज का क्या सामर्थ्य है ? वैशेषिक-इसके अन्यत्र कि यह अंकुर के परमाणुओं का उपसर्पण करता है वीज का अंकुर के जनन में किञ्चित् भी सामर्थ्य नहीं है। वास्तव में यह असम्भव है कि एक द्रव्य की उत्पत्ति एक विजातीय द्रव्य से हो : यदि ऐसा जनन सम्भव होता तो जनन का कोई नियम न होता। (तन्तु से कट' की उत्पत्ति होती)। वौद्ध-नहीं। विजातीय से विजातीय की उत्पत्ति होती है किन्तु यह अनियम नहीं होगा। यथा शब्द, पाकज आदि की उत्पत्ति होती है। (विजातीय अभिघात से शब्द की उत्पत्ति होती है, किन्तु यत्किञ्चित् विजातीय से नहीं होता) । सव पदार्थों का शक्ति-नियम है। वैशेषिकः—आपका उदाहरण कुछ सिद्ध नहीं करता। हमको इष्ट है कि जिसे हम गुण धर्म कहते हैं (शब्दादि) वह या तो स्वजातीय से उत्पन्न होता है अथवा विजातीय (संयोगादि) से उत्पन्न होता है किन्तु द्रव्यधर्म का ऐसा नहीं है । वह स्वजातीय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार वीरण के काण्डों से-और दूसरे काण्डों से या सूत्र से नहीं, कट की उत्पत्ति होती है और केवल कार्पास के तन्तु से पट की उत्पत्ति होती है। बौद्ध--आपका दृष्टान्त कुछ सिद्ध नहीं करता क्योंकि वह स्वयं व्यवस्थापित नहीं है। आप कहते हैं कि एक पदार्थ की उत्पत्ति स्वजातीय से होती है यथा कट की उत्पत्ति वीरण के काण्डों से होती है। किन्तु कट वीरण ही हैं जो तथा निविष्ट है और कट-संज्ञा का प्राप्त करते हैं। पट तथा-संनिविप्ट तन्तु हैं। यथा पिपीलिका की पंक्ति पिपीलिका मात्र है। वैशेषिक–आप यह कैसे व्यवस्थापित करते हैं कि पट तन्तु से द्रव्यान्तर नहीं है ? वौद्ध-जब एक तन्तु का (चक्षु या काय) इद्रिय से संयोग होता है तो पट की उपलब्धि नहीं होती। यदि (एक एक तन्तु से अभिनिर्वृत्त) पट विद्यमान होता तो [२१२] उसको उपलब्धि में कौन प्रतिबन्ध होता?-आप कहेंगे कि एक-एक तन्तु में अकृत्स्नवृत्ति से पट का सद्भाव नहीं है। पट यह कहने के तुल्य है कि पट तन्त्वात्मक पटपभागों का समूहमात्र है क्योंकि आप यह कैसे सिद्ध करेंगे कि पटभाग तन्तुओं से अन्य है ? -आप कहेंगे कि एक-एक . १ निमित्तकारण, समवायिकारण, उई, बैशेषिक फिलासोफी, १३६, १३९, १४१, १४६। गुण [धर्म] और द्रव्य धर्म] का लक्षण वैशेषिक सूत्र, १.१.१५-१६ में है। उद वैशेषिक फिलासीफ़ो पु.१२२ देखिये-कोश, ११. पृ. २९० त एव हि ते तया संनिविष्टास्तां संज्ञां लभन्ते पिपीलिकादिपंक्तिवत् ॥ कयं गम्यते ।। एकतन्तु संयोगे पटस्यानुपलम्भात् । को हि तदा सत उपलब्धी प्रतिवन्यः । अकृत्स्नवृत्ती परस्प कल्प्यमानायां समहमा पटः प्राप्नोति । कश्च तन्तुभ्यो ऽन्यः पटभागः । ."