पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/६४

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3 प्रथम कोशस्यानः धातुनिर्देश ४९ सवितर्कविचारा हि पंचविज्ञानधातवः। अन्त्यास्त्रयस् त्रिप्रकाराः शेषा उभयवजिताः ॥३२॥ अन्य धातु जिनकी संख्या १५ है केवल सास्रव हैं। ४ [५९] कितने वातु सवितर्क-विचार हैं, कितने अवितर्क-सुविचार हैं, कितने अवितर्क- अविचार हैं ? ३२ ए-बी.पाँच विज्ञानधातु सदा सवितर्क-सविचार होते हैं। यह सदा सवितर्क-सविचार होते हैं क्योंकि बहिर्मुखवृत्ति होने से यह औदारिक है। 'हि' शब्द जिसका मर्थ 'सदा' है अवधार- णार्थ है : यह धर्म एकान्ततः सवितर्क-सविचार है । ३२ सी.अन्तिम तीन धातु तीन प्रकार के हैं। यह धातु मनोधातु, धर्मधातु, मनोविज्ञानधातु हैं। १.कामवातु और प्रथम ध्यान में (८.७, ११) (१) मनोवातु, (२) मनोविज्ञानधातु और (३) विर्तक-विचार से अन्यत्र संप्रयुक्त धर्मधातु (धर्मधातु का वह प्रदेश जो चित्त से संप्रयुक्त है २.२३) सवितर्क-सविचार है। २.ध्यानान्तर में (८.२२ डी) यह अवितर्क हैं, विचार के संप्रयोग से विचारमात्र हैं। ३.द्वितीय भूमि से लेकर यावद् भवान (नवसंज्ञानासंज्ञायतन) यह अवितर्क-अविचार (८.२३ सी-डी) हैं। ४.सर्व असंप्रयुक्त धर्मधातु (धर्मधातु का वह प्रदेश जो चित्त से विप्रयुक्त (२. ३५) है) और ध्यानान्तर का विचार अवितर्क-अविचार हैं। ४ महासांघिक और सौत्रान्तिकों का मत है कि बुद्धकाय अनास्लब है (४.४ ए-बी में अविज्ञप्ति का विवाद देखिए) [कथावत्यु ४.३, १४.४ से तुलना कीजिए । विभाषा ४४, पृ. २२९, कालम १; ७६ पृ. ३९१, १८३ पृ.८७१, कालम. ३: (सिद्धि, ७७० देखिए): कुछ वादियों का मत है कि बुद्ध-काय अनास्रव है। यह महासांघिक हैं। इनका कहना है कि "मागम कहता है कि तथागत लोक से अवलिप्त नहीं होते। वह लौकिक नहीं हैंवह संक्लिष्ट नहीं हैं। अतः हम जानते हैं कि वृद्ध-काय अनास्रव है।' इस मत का प्रतिषेध करने के लिए यह दिखाते हैं कि बुद्ध-काय सात्रवहै । यह कहना कि यह अनास्त्रव है सूत्र का विरोध करना है। बुद्धकाय अनास्रव नहीं है क्योंकि यह परक्लेश का प्रत्यय हो सकता है। विभाषा, १७३, ९: बुद्धकाय अविद्या और तृष्णा का फल है। अतः यह अनालव नहीं है। सूत्र कहता है कि साकल्येन १० आयतन (चक्षुरिन्द्रिय. .) नीर दो आयतन के प्रदेश (मन आयतन, धर्म) सासद हैं. । यदि वृद्धकाय अनात्रव होता तो स्त्रियों को उनके लिए कामराग न होता; दूसरों में वह राग, द्वेष, विक्षेप, मद......फा उत्पादन व्याख्या पृ० १४ से तुलना कीजिए; ऊपर पृष्ठ ६ देखिए। १ विभंग, ९७, ४३५ में यही प्रश्न है-वितर्क और विचार का लक्षण २.२८, ३३ में है। २ सवितर्कविचारा हि पंचविज्ञानवातवः। व्या० ६३.२८] ३ अन्त्यास्त्रयस्त्रिप्रकाराः [व्या० ६३.३०] 1 . करते। ४