पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/८७

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७२ अभिधर्मकोश २. [वैभाषिक अपने वाद का उपाख्यान जारी रखते हैं ] . तीन इन्द्रियों के बारे में कहा जाता है कि यह प्राप्तविषय हैं क्योंकि विषय का इनके साथ निरन्तरत्व है । निरन्तरत्व क्या है ? निरन्तरत्व इसमें है कि इनके मध्य में कुछ नहीं है (तदेवैषां निरन्तरत्वम् यन् मध्ये नास्ति किंचित्) । यही 'प्राप्त' का भी अर्थ है। पुनः क्योंकि संघात के अवयव होते हैं इसलिए इसमें कोई दोष नहीं है कि संघात स्पर्श करते हैं । और इस दृष्टि से विभाषा के व्याख्यान (७३, १६) युक्त हैं : क्या स्पृष्ट स्पृष्टहेतुक है या अस्पृष्टहेतुक है?" [९१] यही प्रश्न अस्पृष्ट के लिए है । "इसका भात्यन्तिक उत्तर नहीं हो सकता। कभी अस्पृष्ट स्पृष्टहेतुक होता है जब स्पृष्ट विशीर्ण होता है। कदाचित् स्पष्ट अस्पृष्टहेतुक होता है, जब अस्पृष्ट चय को प्राप्त होता है। कदाचित् स्पृष्ट स्पृष्टहेतुक होता है, जब संघातों का चय होता है । कदाचित् अस्पृष्ट अस्पृष्टहेतुक होता है। यथा गवाक्ष के आकाशधातु में अवलम्वमान रजः कण।" भदन्त वसुमित्र कहते हैं: यदि परमाणुओं का स्पृष्टि-योग होता तो उनका उत्तर क्षण में अवस्थान होता। (४) वसुबन्धु के मत---१. भदन्त कहते हैं कि 'परमार्थ में स्पर्श नहीं होता । जव उनका निरन्तरत्व होता है तो उपचार से कहते हैं कि परमाणु स्पर्श करते हैं" (विभाषा, १३२, १ में उद्धत, पृ.९० की टिप्पणी के अन्त में देखिए।) यह मत इष्ट है । २ वास्तव में यदि परमाणुओं के बीच अन्तर, अवकाश होता तो अन्तरों के आकाशधातु होने से यह क्या है जो शून्य अन्तरों में सान्तर परमाणुओं की गति को प्रतिबद्ध करता ? हम मानते हैं कि परमाणु सप्रतिष है। यह संधारण करता है, यथा कल्प के आरंभ में। यदि परमाणु स्पर्वा नहीं करते तो प्रतिघात से शब्द की अभिनिष्पत्ति कैसे होती है ?-- इसी कारण शब्द की उत्पत्ति होती है। क्योंकि यदि परमाणुओं का स्पर्श होता तो शब्द की उत्पत्ति कैसे होती ? यदि परमाणुओं का स्पर्श होता तो हाथ और जिस शरीर का यह अभि- घात फरता दोनों का मिश्रीभाव होता और कोई स्वतन्त्र प्रदेश न होता; उस अवस्था में शब्द की उत्पत्ति कैसे होती? वसुमित्र कहते हैं कि "परमाणु स्पर्श नहीं करते : यदि वह स्पर्श करते तो उत्तर क्षण तक उनका अवस्थान होता।" भवन्त कहते है : वास्तव में कोई स्पृष्टि नहीं है। जब परमाणुओं को उत्पत्ति निरन्तरत्व में होती है तब संवृतिसत्य के अनुसार स्पष्ट संज्ञा होती है। क्या स्पृष्ट स्पृष्टहेतुक होता है ? २ विभाषा, १३२, पृ०.६८४, कालम १, पंक्ति ११. ५ उनको स्पृष्टि-योग के लिए (द्वितीय क्षण) उत्पन्न होना होता है (प्रथम क्षण) ! घसुमित्र का मत कई-को को विशिका, ३.११ वी में उद्धृत हुआ है । पसुबन्धु का मत है कि भदन्त निरन्तरत्व' से यह समझते हैं कि परमाणुओं के बीच अन्तर नहीं होता। हम देखेंगे कि संघभद्र का भिन्न मत है। वसुगन्य के लिए परमाणु का निरन्तरत्व है। उनका कभी मिश्रीभाव नहीं होता क्योंकि सप्रति होने से यह निरन्तरत्व के होते हुए भी पृथक अवस्थान करते हैं। पृ०.२५ देखिए २ 1