पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/९५

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20 अभिधर्मकोश १५. श्रद्धेन्द्रिय, १६ . वीर्यन्द्रिय, १७ . स्मृतीन्द्रिय, १८, समाधीन्द्रिय, १९. प्रजेन्द्रिय, २० . अनाज्ञातमाज्ञास्यामोन्द्रिय, २१ . आज्ञेन्द्रिय, २२. आज्ञातावीन्द्रिय (पृ.११७ देखिए) । आभिधार्मिक (प्रकरणपाद, फोलिओ .३१ बी) वक्षुरायतन, श्रोत्र, प्राण, जिह्वा, काय० और मन-आयतन इस षडायतन-व्यवस्था का अनादर करते हैं। वह मन-इन्द्रिय को जीवितेन्द्रिय के अनन्तर, न कि कार्यन्द्रिय के अनन्तर, पढ़ते हैं क्योंकि मन-इन्द्रिय वेदनेन्द्रिय (१०-१४) के समान सालम्बन (१.२९ बौ-सी) है और पंचविज्ञानेन्द्रिय (१-५) के समान केवल सविपय नहीं है। [१०२] २२ इन्द्रियों में ११ अर्थात् जीवितेन्द्रिय (९), ५. वेदनेन्द्रिय (१०-१४), श्रद्धादि ५ इन्द्रिय (१५-१९) और अन्तिम तीन का भाग धर्म धातु के एक देश हैं।' (१) पंच विज्ञानेन्द्रिय जो पांच धातु और ५ इन्द्रिय हैं (१-५), (२) मन-इन्द्रिय (१.१६ सी) अर्थात् पष्ठ इन्द्रिय जो सप्त चित्त-धातु है और (३) अन्तिम तीन इन्द्रिय का एक भाग--यह १२ आध्यात्मिक धातु है। शेष पाँच धातु और धर्मधातु का एक प्रदेश इन्द्रिय नहीं हैं। धातुनिर्देश समाप्त २ इन्द्रियों का नाम २.६ में युक्त सिद्ध किया है। विभंग, पृ. १२२, कथावत्यु, अनुवाद पृ.१६, विसुद्धिमग्ग, १६ में हमारे सूत्र का काम पाया जाता है। ज्ञानशस्यान के छठे ग्रन्य इन्द्रियस्कन्धक में भी (तामासु, अभिधर्म लिट रेचर, जे० पी० टी० एस. १९०५, पृ.९३) । अनुण्ड के क्षुद अन्य (काम्पेण्डियम पृ. १७५) का नाम वही है जो प्रकरणपाद का है। महाव्युत्पत्ति (१०८) की सूची में जोवितेन्द्रिय सर के अन्त में है। । अन्तिम तीन इन्द्रिय (१-३) लोन वेदनेन्द्रिय, (४-८) श्रद्धादि पांच इन्द्रिय, (९) मनः इन्द्रिय (२.४} हैं । १-८ धर्मयातु है । -