पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

९८ अमर अमिलापा चम्पा उन्हें लेने पो गृहिणी के पाल दौड़ी। गृहिणी ने कहा-"रहने भी देाहने क्या फरने हैं। याही चिली नायगी।" चम्पा ने कहा-"चाची, सब लुगाई गो थोड़े-पहने थावेगी, यह ऐसी क्या थच्छी लगेगी?" गृहिणी ने कहा-"वावली ! भगवती को गहने क्या शोभा दंगे?" पर चम्पा करी धानी की नहीं थी, ऐसी चिपको फि गहने लेकर ही रही । भगवती ने फितना ही रोफा-पर उसने एक-एक फरके सय थाभूपण पहना दिये । सब-कुछ पहनाकर चम्पा ताली बनाकर हंसी। उसने कहा-"भगवती ! तुझे याद है-तेरे गौने के दिन हमने ही तुझे यह सब पहनाये थे ?" भगवती और भी उदास होगई-उसने यात लिपाने को कहा-"चल चम्पा, श्रय चलें।"दोनों चलीं-यांगन में गृहिणी खड़ी थी। उसने देखा-भगवती जारही है। वृद्धा की भाँखों में आँसू भर आये। उसने धीरे-से कहा-"क्या श्रान भगवती का गौना है?" पर उसके ये शब्द किसी ने सुने नहीं; वायु- मण्डल में मिल गये। गृहिणी आँस् पोंछकर घर में घुस गई। मानसिंह के घर में सियों की खूय रेल-पेल थी। भाँति-भाँति के रङ्गीन वस्त्राभरण धारण किये युवतियों का मुण्ड नवेली बहू