पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१०८

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१०६ अमर अभिलापा पालिका ने फरारेपन से कहा-"नही तो।" पर उसकी सांस ने फह दिया-मानों उसी को उमी की बात पर भविश्याम है। "नहीं तो फैसे? मैं देखता है, तुम्हारा सोने का शरीर मिट्टी हो रहा है............" यात फाटफर भगवती योली-"मेरा हाय पोद दो-तुमने मुझे क्यों पुकारा था ?" "एक बात कहनी थी।" "यया?" "मानोगी?" "पथा घात" "तुम्हें लिसना पाता है?" युवक ने कुछ इधर फरके कहा-"तुम्हें जो सकलीफ हो,. मुझे लिख भेजा फरो। जो चीज़ चाहिये, उसकी तकलीफ ने भोगनी पड़ेगी-में भेज दूंगा।" फन्या ने विस्मय-से कहा-"क्यों, तुम क्यों भेलोगे ?" "तुम्हारी तफलीफ भुमसे नहीं देखी जाती!" "मैं तुम्हारी चीज़ क्यों ल ?" "क्या हन है ? मैं तुम्हारे भाई का मित्र जो हूँ।" "मुझे ऐसी तकलीफ ही क्या है ?" "यह यात मूल है। तकलीफ न होती, तो तुम्हारी ऐसी सूरत हो जाती?"