पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/११७

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'उपन्यास छजिया ने नखरे से कहा-"तुम्हारी समझ में भावें पत्थर ! ताईनी, अब क्या बूढ़े तोते पुरान पढ़ेंगे?" गृहिणी ने हँसकर कहा-"हमारी जब ऐसी उमर थी, तब तो किताबों का नाम भी नहीं सुना था वहन । यह नई ताँती हुई है-इसकी सभी बातें नई है।" छनिया ने भगवती का हाथ पकडकर कहा-"क्यों भो, तुम्हें कितावें शादमी से भी अच्छी लगती है ?" गृहिणी ने कहा-"वस, एक चम्पा से तो इसकी घुटती है। जिस दिन वह भाजाय, उस दिन इनकी यातों का तार नहीं टूटता।" लिया हँस पड़ी। उसने कहा-"ताईनी, बराबरवालियों में सभी का नी लगता है।" सुखिया श्रव तक चुपचाप बातें सुनती रही थी, अब उसने कहा-"ला कुलता दे।" मुँह चूमकर छलिया बोली-"हाँ-हाँ ! अपनी विटिया को बड़ा अच्छा पुरता दूंगी। बता, कैसा कुरता लेगी--सुखिया ?" "ऐछा", कहकर उसने दादी के घुटनों में दबा हुआ करता सँगली से दिखा दिया। चजिया ने कहा-"शच्छी बात है-अभी वज़ाज़ को बुला- कर पांच-छ: थान मँगवाती हूँ।" भगवती ने हंसफर कहा-"थोड़े-न-बहुत-पाँच-छ: थान ?" छजिया ने और भी हँसकर कहा-"सुखिया को नीचे से