११८ अमर अभिलापा क्या लगह-जगह मिलते हैं? कैसा सुन्दर कमाऊ पदा-लिखा लड़का है-कुन्दन की तरह शरीर दमकता है !" भगवती सुखिया को लेकर चल दी। उससे वहाँ टहरा ही नगया। पन्द्रहवाँ परिच्छेद राजा साहब फा नाम न बताना ही अच्छा है। यह तो हम कह ही चुके हैं, कि उसकी थायु चालीम के लगभग है, रङ्ग साँवला, और आँखों में लम्पटना कूट-कूटकर भरी है। प्रजाजनों में उनके अत्याचार से त्राहि-त्राहि मच गया था। किसी की भी बहू-बेटी की इज्जत सलामत न थी। इस धात को लेकर सरकार से उन्हें बहुत मलामंत मिली। थन्त में रियासत कोर्ट-यॉफ़-चा हुई, और श्रापको मिलता है, वजीका । अव श्राप शहर में रहते, और निश्चिन्त अपने लुच्चे. लफझे नौकरों द्वारा शहर की यहु-बेटियों का सर्वनाश किया करते हैं। इस समय वे अपनी थाराम-कुर्सी पर धूप में पैर फैलाये पढ़े पान चवा रहे थे, और एक दुबला-पतला कमीना- सा श्रादमी सामने ज़मीन पर बैठा, निर्लज्जता से भिन्न-मित्र बातें कर रहा था । राना साहव ने कहा-"तो पानिर घर का पता वो बग-ही गया ? वह अकेली ही तो रहती है ?"
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