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उपन्यास ११९. "नी हाँ, उसके सिवा वह बुढ़िया मकानवाली है, सो वह हत्ते चढ़ गई है, और सौ-पचास रुपये पाफर वह सब काम फर देगी। सव काम सहूलियत से हो नायगा। मगर एफ वात है !" राना साहब ने अकचकाकर कहा-"यह एक वात प्रक कौन-सी है ?" "वह नौलवान, जिसने उसे उस दिन बुदाया था।" "उसकी क्या बात है?" "वह नित्य-ही उसके पास पाता है।" "उससे उसका क्या सम्बन्ध है? क्या वह उसका रिश्ते- दार है ?" "बुढ़िया के कहने के अनुसार तो वह उसी दिन से पाता है।" "तब तो वह हमारे रास्ते का फएटक है। साले को साफ ही न कर दिया लाय?" "क्या जलत है ? ऐसा न किया जाय, कि साँप भरे न लाटी टूटे।" "वो तुम यह समझते हो, कि तुम से यागीचे में ले थायोगे " "इसमें कुछ भी गोल-माल न होने पावेगा।" "अच्छी बात है, ठीक पाठ दले । समझ गये न?" "नी हाँ। तो अब मैं नाता हूँ। मैं एक किराये की गाड़ी