पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१२४

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अमर अभिलापा "टनकी लड़की से यहनापा, धापन में मिलती जुलती रहती है।" "तब श्रमी लौटने की कोई उम्मीद नहीं।" "से कहा नाय, बची ही तो है। कोई पर तो है नहीं, नो डाट-डपट फो।" "मैं वो ज्यादा कर सकता नहीं । नुन पद देना, कि प्रकार आया था। मैं कल श्रागा" प्रकाश चला गया। वृद्वा घर में श्राफर बैठी-दिन छिप गया। सुशीला ने वृद्धा की कोठरी में पाकर कहा-"शची, अब खवर थाई ?" "आई तो । सुना, वे बेहोश हैं।" "कोई अपना भी नहीं है।" "वहां अपना कौन है?" "फिर क्या करना चाहिय?" "कल फिर खबर मिल सकेगी।" "चाची, यह तो बड़ी बुरी जबर है।" "फिर मैं क्या करूँ बेटी? तू कहे, तो तुम ले चयूँ ।" "वहाँ क्या स्त्रियों को नाने की इजाजत है ?" "ह ठो, मैंने लड़के से पूछा था।" सुशीला सोच में पड़ गई। कुछ ठहरफर उसने कहा- "चाची, फिर चलो; एक गाड़ी मँगालो।"