पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१२८

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अमर अमिलापा "हाँ-हाँ, कंत्री । जेपी चपा के पान थी-रयर श्री!' "यह लो।" कहकर एक नोड़ा दिया फैवियों का इनिया ने भगवती के हाय पर घर दिया। भगवती ने बड़ी प्रसन्नता से उन्हें लेकर कपड़ों में छिपा लिया। लिया बोली- सिर में लगाकर वो देख।" "नहीं-नहीं, अभी नहीं सोती धार ।" "सोती चार कौन देखेगा? ऐसी चीज़ पहनकर साजन को दिखाते हैं।" भगवती सिकुद गई। उसने कहा-"जिया, अय व ला; फिर पाइयो।" पलिया ने कहा-"पच्दा, जाती हैं, पर रम वात का क्या जवाब रहा?" भगवती के शरीर का रक्त प्रवाह ल गया। वह खटी-तड़ी पसीने में नहा गई, बास्त्रों में अंधेरा छा गया, मुँह से शब्द न निकला। छविया ने उसके कन्धों पर हाथ रखकर धीरब से कहा- "इतने घबराने की क्या बात है? सय काम ऐसी टत्तादी से होगा, कि कानों-फान किसी को उबर न पड़ेगी, और न अब पालक तो है नहीं। भगवान ने औरत-मई फा जोड़ा बनाया ही है। नव मेरी उमर नरे यरावर थी....." कुछ ठहरकर उस दुष्टा ने एक कटान फेंककर कहा- -