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पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१६१

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उपन्यास । - पर पड़ी, यिस्तरे में से दौना चमक रहा था। उसे निकालकर हाथ में लेते ही वे भाँधक-से रह गये। उनके मुख से निकल पदा -"सर्वनाश ! हत्यारी- इसी अन्य का पाठ कर रही होगी?" फिर उन्होंने दूसरी चीज़ों को देखना शुरू किया-लेवल्डर, कंधे, शीशी, इत्र, मिगई और तरह-तरह के सामान। इन सबको देखफर हरनारायण के होश फ्रास्ता होगये । उन्होंने दुखी होकर, हधे काठ से कहा-"हाय, हम क्या अब तकसोरहे थे?" इतने ही में उसकी दृष्टि पुस्तकों पर पड़ी। उन्होंने देखा- एक पुस्तक का नाम या, 'तोता-मैना का हिस्सा.' दूसरी उगई, यह थी, 'हरदेवसहाय का यारहमासा ।' तीसरी टवाकर देखा, यह था 'दिल्लगन नापल ।' धायी पुस्तक उठाई, वह यी-सच्चा आशिक" पांचवीं को देखा, वह यो 'बहारे-बुलबुल ।' अब हर- नारायण उन्हें विना देखे ही फाइ-फादकर फेंकने लगे। क्रोध में श्राफर घोले-"हत्यारी, डायन ! तुझे यही फिवावें पढ़ने को रही थीं? इसीलिये तूने पढ़ना सीखा था?" इतना कहकर हरनारा- यण रस्सी लेकर उसे मारने को टूट पड़े। पालिका, पापिनी यालिका, अपराधिनी वालिका, अपना अपराध समझ गई थी। वह किस मुंह से रोती-मा-प्रार्थना करती, हाय-हाय करती-वह केवल उटपटाकर भूमि में लोटने लगी। हरनारायण मापे में नहीं था। वह पशु की तरह उस भूमि पर लोटती हुई को सपासप रस्सी की मार देरहा था। बालिका ने रक्षा के लिये दोनों हाथ उठा दिये। हाय जोड़कर, 1 ,