पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१७२

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१६ अमर अभिलापा मुख रहरहकर भयर दोना पाता था । जयनारायण से वहां ठहरा न गया। उन्होंने नारायणी मे कहा-"पेटी, मैं अमी पद्य को बुलाता है त यहीं बैठ।" इतना फहमार वे पार पाये। देसा, हरनारायण लोटा नकरार जाने की तैयारी में जयनारायण ने दुःसी स्वर से कहा-"अरे ! टने तने जान से ही मार टाली होती-ज़िन्दी क्यों छोपदी ? मुझे उस पर फुल-भी दया नहीं पाई ?" हरनारायण ने कुछ सयाव नहीं दिया । यह ज्यालामय नेत्रों से पिता को घूरते-धृरते लोटा लेफर बाहर निकल गया । जयनारायण पुत्री के औषधोपचार में लगे। छब्बीसवाँ परिच्छेद बिजली के ज्वलन्त प्रकाश में फमरा धमाका दिप रहा था। उसमें खूप काळ से विलायती यन्तुनों की सजावट भी हो रही थी। कमरे के बीचों-बीच एक फोध पर एफ सुन्दरी लेटी थी, और एक युवक पाम ही एफ थाधी थारामफुसी पर सामने बैठा उसे मना रहा था । सुन्दरी के घर महीन और मुगन्धि मे तर थे। चे अस्त-व्यस्त विसर रहे थे। वह युवक पर मान कर रही थी। उसकी किसी भाशा का पालन युवक नहीं कर पाया था-यही मौन-कोप का विषय था । युवक ने कहा-