सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इकत्तीसवाँ परिच्छेद राना साहब ने सुशीला का हाथ पकडकर कहा-"बेवकूफ लड़की, अब तू जाल में फंस गई!" सुशीला ने अपना हाय मटककर कहा-"माप-जैसे प्रतिक्षित पुरुषों को गरीब लोगों पर इतना जुल्म करते दया नहीं पाती। जुधा-चोरी करते और झूठ बोलते शर्म नहीं भाती ?" शना ने निर्लज्जता से हँस दिया। हँसकर कहा-"जुभा. घोरी कैसी?" "धोखा देकर जो मुझे बुलाया गया।" "धोखा दिया किसने ? तू राज़ी से तो पाई है, और मात्र नखरे करती है !" "मुझे मालूम न था, कि वह पापिनी बुदिया भी इतनी "अप उसे क्यों कोसती है?" "आप मुझे चली जाने दीजिये।" "यह अच्छी कही" "मैं कहती हूँ, कि ली जाने दीजिये।" "वरना" "मैं नान पर खेल जाऊँगी।" "बाहरी हिम्मत ! मगर साहब, हमारी मुराद तोपरीनदो!"