१९६ अमर अमिलापा , घर किधर है, यह मालूम न था । पर लिस घर की विश्वा- सिनी वृद्धा ने इतना विश्वासघात फिया, श्रय उस पर कैसे विश्वास फिया नाय ? बहस कसे अकेला रहा जाय ? तब वह जाय कहाँ ? हात् उसे स्मरण पाया-यह तो प्रकाश को देखने थाई थी । वे यहुत बीमार हैं । पर सचमुच चे बीमार हैं ? वृद्धा की चालाकी को देखते वो यह यात मुल मालूम होती है। पर वे बीमार हों या नहीं, हर हालत में मुझे यही चलना चाहिये। वे जैसा कहें, यह फरना चाहिये । इसके सिया निरापद रहने का और कोई उपाय नहीं। पर फॉलेज होस्टल फहाँ ? सामने एफ कान्टेयिल पहरा देरहा था। मुशीला हिन्मत करके उसके पास जाकर बोली- "माई, पया तुम यता सकते हो, कि कॉलेज-होस्टल यहाँ से कितनी दूर है, धौर फिस तरफ़ है?" सिपाही ने उसे गौर से देखा, और होस्टल का पता दता , दिया। सुशीला को अधिक दूर न चलना पड़ा। एक माली गाड़ी उधर से धारही थी। उसने उसे रोककर कहा-"चलो कॉलेज- होस्टल।" सुशीला बैठ गई । गादी धड़धड़ाती बल दी, और शीघ्र ही फॉलेन-होस्टल पागया। गादीवाले ने कहा-"ठिकाने पर पहुंध गये।" सुशीना ने कहा-"तुम उतरकर किसीचपरासीको वुलामो।"
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