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पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२०४

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२०० अमर अभिलापा

"मैं हूँ प्रकाश, करा नीचे प्रायो।"

भ्यामनाय तत्काल नीचे श्राफर पोले-"रियत?" "रियत ही है। मेरी वहन थाई है, इन्हें घर में अभी यही रखना होगा। यही षष्ट देने धाया है।" त्यामनाय ने कहा--"वाह !कर क्या है। यह क्या तुम्हारा घर नहीं है ? चलो, भीतर माँ है,भाभी तो अभी नहर गई है।" प्रकाश ने कहा-"मैं तो भी वापस लौट ताऊंगा । होस्टल से यो-ही चला पाया हूँ । मैं सुबह मिलूंगा।" इतना कह प्रकाश ने सुशीला की ओर मुड़कर कहा-"सुशीला, ये मेरे परम मित्र श्यामा याबू है। घर में इनकी माता है। अभी तुम्हें उनके पास कुछ दिन रहना पड़ेगा। उनके साथ भीतर जायो।" इतना सुनकर सुशीला गाड़ी से उतरफर चुपचाप भीतर चली गई। प्रकाश गाड़ी में बैठ, होस्टल को लौट गये । बत्तीसवाँ परिच्छेद रात-भर प्रकाश को नींद नहीं पाई। एफ भयानक विधार रह-रहकर उनके मन को विचलित करता था। वे क्रुद्ध सिंह की भौति अपने कमरे में द्वार चन्द करके टहलने लगे। वे . सोच रहे थे-ये कमीने राजा और रईस यहाँ तक षयों गिर जाते हैं, कि वे न औरत की परवाह करते हैं, न इजत-नाबरू की ? पराई ।