उपन्यास २०१ चाहिन-बेटियों की इज्जत लूटना मानो उनका साधारण काम है हम चाहते हैं कि समान में नियों को स्वाधीनता मिले। जय तक ये नीच शिकारी रहेंगे--स्वाधीनता मिलेगी कैसे ? ये पतित कीड़े थोर वामना के कुत्ते क्या किसी तरह भयभीत नहीं किये जा सकते ? मानून एक छल है। मैं मानून पढ़कर पड़ता रहा हूँ।मैं समझता था, इपसे गरीबों का भला होगा। पर इससे सदा ही चालाकों और चुस्तों का ही भला होता है । कानून चुपचाप देखता रहता है, और सभी पाप उसके सामने होते हैं। फिर इन आतताइयों से बचने का उपाय क्या है ? क्या मदं का यह फर्तव्य नहीं, कि वह पापियों के दण्ड को थपने हाथ में लेले? कानून क्या अपूर्ण नहीं ? और कानून पर निर्भर रहना क्या कायरता नहीं ? प्रकाशचन्द्र वड़ी देर तक यही सोचते रहे। धीरे-धीरे कोई भयानक संकल्प उनके मन में घर करने लगा । वे उद्देग में भाकर जोर-जोर से पैर पटककर बल्दी-जल्दी टहलने लगे। उन्होंने सोचा-इतिहास के उदाहरण कैसे है ? स्त्रियों के सम्मान की रक्षा के लिये खून की नदियाँ यह नाया करती थीं। थान हम ऐसे फायर और पोच हो गये, कि हम या तो चुपचाप लोह के 'घुट की तरह उन अपमान को पी नाते हैं, या पुलिस और कानून की मदद से उसकी मरम्मत करते हैं, जो प्रायः ही मूठों और चालबाजों की सहायता किया करता है। मै निश्चय ही कानून को अपने हाथ लँगा । लम्पट थोर कामुक पुरुष जगत् के
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