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पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२०८

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२०४ अमर अभिलापा •फर दुप होगये । प्रकाश चलने लगे, तब श्यामा ने कहा-"क्या सुशीला से मिलोगे नहीं ?" "नहीं, इस समय नहीं।" वे चल दिये । ज्यों-ज्यों वे आगे बढ़ रहे थे, उनकी चाल 'में तेज़ी भारही थी। वे शहर की गलियों को पार करके सड़क पर भाये, और सड़क को पार करके भाये शहर के बाहर। शीघ्र ही वे राजा साहब की आलीशान कोठी पर आपहुंचे। वहाँ श्राफर वे क्षण-भर रहर गये। फिर उन्होंने पहरेदार से कहा- "क्या राना साहब भीतर है ?" "हमारा कार्ड उन्हें दो, और सलाम बोलो।" पहरेदार कार्ड लेकर भीतर गया, और शीघ्र ही पुलाकर 'भीवर लेगया। राना साहब अकेले बैठे, चाय पी रहे थे, और अनवार हाथ में था। युवक को देखकर कहा-"आपका क्या काम "मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी है।" "कहिये।" "मैं उस लड़की के विषय में वात किया चाहता हूँ, निसे "श्रापने धोखे से कल रात उठवा मैंगवाया था।" राजा साहब के हाथ से चाय का प्याला भौर प्रखवार दोनो छूट गये। वे अकचकाकर युवक की ओर देखने लगे। उन्होंने कहा-"पाप का मतलब क्या है ?"