पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२१२

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२०८ अमर अभिलाषा पहुँचे। और भी दो कॉन्सटेबिल घुस आये और युवक को देख- कर खड़े होगये। यह देखकर युवक मुस्करा दिया । इन्स्पेक्टर ने भी चढ़ाकरः कहा-"क्या खून तुमने किया ?" "जी हाँ।" "क्यों?" "सज़ा देने के लिये ।" "किस बात की सज़ा?" "यह पराई बहन-बेटियों का धर्म विगादता था।" "तुम्हें मुनासिब था, कानूनी कार्यवाही करते " "कानून सम्पूर्ण नहीं है।" "फिर भी तुम्हें अधिकार न था।" "स्प्रेर, श्राप अपनी जाने की कार्यवाही कीलिये।" "मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूँ।" "कीनिये न, में बढ़ी देर से श्रापकी इन्तज़ारी में वैग था।" तुरन्त युवक को हथकड़ियाँ लगादी गई। इसके बाद लाश' की खोज-जाँच होने लगी। फिर युवक को घेरकर पुलीम थाने में ना पहुँची । राजा साहय के खून की खबर आग की तरह शहर में फैल गई, और शहर-भर में एक आतङ्क छा गया ।