सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२१२ अमर अमिलापा चाप वृद्धा ने कुमुद के पास पहुंचकर कहा--"प्रमागिनी, अभी उसकी चिता भी ही नहीं हुई, और नूने यह यश फमा लिया।" कुमुद को तो बोलने का अवसर ही नहीं मिला I, वह चुप- बैठी रोती रही। धीरे-धीरे घर के सभी स्त्री-पुरुषों को यह यात विदित हो. गई। वह कौन था? पद फौन था ?' मय के मुंह पर एफ-ही यात थी। मगर वह दुष्ट यह फहकार चुप होगया,-"मैं टससे समझ लूंगा, पर यताऊँगा नहीं। अपने ही खानदान की यद- नामी होती है।" स्वसुर ने जय सुना, तो भागबबूला होगया। गालियाँ दी, और मारने का भी उपक्रम फिल्या । गहना-पाता धार सम नो पास था, छीन लिया, और कह दिया-"इसफा यहाँ एफ मिनट रहना नहीं होगा। यह नहीं चाहे, चली जाय।" अन्त में यह निश्चय हुथा, फि उसके भाई को तार दे दिया जाय, कि वह इस श्राफर जाया। तार दे दिया गया, और यह दिन गाली-गुप्तता में क्य। कुमुद ने न कुछ खाया, न एफ बूंद पानी पिया । वह यच्चे को छाती से लगाये पढ़ी रही। शाम हुई कुमुद ने सोचा-अव क्या करूं? इस पृथ्वी पर मेरा सहायक कौन है ? उसे यह खबर न थी, कि उसके भाई को तार दिया गया है। उसने भाई के पास जाने का निश्चय