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पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२१५

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उपन्यास २११ "धाप पूज्य है, घड़े हैं, आपको क्या ऐसी यातें शोभा देती हैं ?" "मैं तेरा उपदेश सुनना नहीं चाहता।" "आप चले जाइये ! मैं भी श्रापकी बात नहीं सुनना चाहती।" "सुमे मेरे हाथ से कोई नहीं बचा सकता।" "परमेश्वर सभी को बचाता है।" "देखें, परमेश्वर कैसे बचाता है ?" इतना कहकर वह दुष्ट उस पर टूट पड़ा। बच्चा रो पड़ा, उसे छीनकर उसने अलग केन दिया। कुमुद ने अपना पूरा बल लगाकर दुष्ट को गिरा दिया, और बाहर आँगन में आकर 'दौड़ो-दौड़ो' चिल्लाने लगी। इतने ही में घर की स्त्रियाँ भागई। यह मानरा देखकर वृद्धा योनी • "यह क्या बात हुई ?" जेठ ने कहा-"एफ सण्डा घर में घुस रहा था, मैंने उसे पकड़ लिया, तो इस पापिनी ने उसे भगा दिया, और मेरे हाथ में काट खाया।" समी अवाक रह गये। निठानी और ननद ने भी चदाफर कहा-"इसके ये लक्षण तो अब तक मालूम ही न थे।" बड़ी ननंद बोली-"बैठी-बैठी बच्चा खिलाती रहती थी।" "यार को चिट्ठी लिखती होगी।" ,