उपन्यास २१९. अधिक हठ व्यर्थ देख, माई सहमत हुए । दोनों व्यक्ति उसी पण घर से बाहर होकर काशी की भोर जानेवाली गाड़ी में बेठ चले। पैंतीसवाँ परिच्छेद कुमुद के जेठ का नाम रामनाय था। कुमुद के साथ मालती की घनिरता को वह जानता था। घर-मर को यह यात मालूम थी। यह लम्पट आदमी उस बालिका के रूपर भी कुदृष्टि रखता था। परन्तु मालती शितिता और प्रतिक्षित घर की बेटी थी। रामनाथ का साहस उसके सामने पड़ने का नहीं हुआ था। इस यार उसने मालती पर दृष्टि डालने का साहस संचित किया । मालती नित्य-ही स्थानीय कन्या-पाठशाला में नियमित समय पर पढ़ने जाती थी। उसने मैट्रिक परीक्षा पास करने की जानती थी। यह सब उसने कुमुद के अनुरोध से किया था। कुमुद चलते- चलते उससे कह गई थी-"पदना न छोडना, पढ़ने में एकदम डूब जाना, परमेश्वर पर भरोसा रखना, इतना धीरत न हो, तो मुझ पर रखना । वेरे संकट अवश्य ही करेंगे।" मालती को सखी की इस बात से दहुन ढाँदस बंधा था। वह सब बातों से मन हटाकर पढ़ने में लग गई थी। उसके चित्त में वासना थी, चंचलता भी थी। परन्तु वह उच्च घराने की "
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