पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२३४

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२२८ अमर अभिलाषा काम छोड़कर इस मनोहर दृश्य को देखने के लिये प्रा-जुटे । नयनारायण के पैरों से धरती निकल रही थी। उसने मुँह ढाँपकर, पढ़े हुए हरनारायण से कहा--"चलो वेटा. जो भाग्य में भोगना वदा है, भोगें। इस तरह पड़े रहने से क्या काम : चलेगा!" उन्होंने बाहर आकर दारोग़ानी को सलाम किया । दो-चार भलेमानसों को साथ लेकर दारोगाजी ने भगवती के बयान तिये । वह सत्य बात न छिपा सकी। देखते-ही-देखते छजिया, गोविन्दा और गोपाल पाँड़े के नाम सिपाही छूट गये, और वे लोग भी पकड़े गये । सब के इजहार हुए। छनिया और पाँडेली ने एकथारगी-ही इस मामले में कुछ जानने से इन्कार कर दिया . इन लोगों की पूजा भी हुई। निस समय जिया और पाँडेजी पर पुलिस के सिपाहियों की पादत्राण-वर्षा होरही थी, तो सारे गाँव पर भयङ्कर भातक छा गया। वृद्धजन सिर मुकाकर खड़े होगये, किशोर पिता- दादा की छाँह में छिपने लगे, थौर अबोध बच्चे गिल्ली-डण्डा फेंक फाँककर चूंघटवानी माताओं की गोद में ना छिपे । नयनारायण चुपचाप वजाहत की भाँति एक तरफ बैठा सब कौतुक देख रहा था। शिवसहाय चौधरी ने पास भाकर धीरे-से कहा-"अब इस तरह पत्थर की तरह कब तक बैठे . रहोगे ? ज़्यादा मज़ीता कराने का काम नहीं; हुआ-सो हुभा- मामले को रफा-दफा करो।" जयनारायण मुँह उठाकर चौधरी की भोर देख भी न सके । 1