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पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२३५

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उपन्यास २२९ मामला वह दोनों हाथों से मैंह दांपकर रोने लगे। चौधरी ने उनके पास बैठकर कहा-"कुछ रुपये-पानी का प्रबन्ध करो, यों नहीं होगा।" जयनारायण ने रोते-रोते कहा-"पापको किसी तरह मेरी सात वचती दीखे, तो बचाइये, वरना पर्याद तो हो ही चुका हूँ" चौधरी साहय चुपके से याहर उठ गये । देखा-हरगोविन्द- पाला सिपाही लौट पाया है। उसने कहा-"वेघर पर है हीनहीं।" चौधरी साहब उस कॉन्स्टेबल को संकेत करके एक सर ले गये, और कहा-"थानेदार माइय से कहकर मामला रफा-दफा करो।" राम का नाम लो याया!" "क्यों ?" "ये तो रिलयत का नाम सुनकर काटने दौड़ते हैं।-राम दुहाई !" "भई, यह काम तो किसी तरह करना ही होगा।" "मामला संगीन है, इनका मिजाज कड़ा है। बानक बनता दीखता नहीं है।" "कोशिश नो करो, तुम्हारा भी हत मिलेगा।" सिपाही चुपचाप थानेदार के पास जाकर कान में कुछ कहने लगा। थानेदार ने चमफकर कहा-"नहीं जी, हमारे पास कोई मत माओ; हम किसी की नहीं सुनेंगे।"