पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२४४

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अमर अभिलाषा "बेटी, तेरी इच्छा क्या है ?" "मैं स्त्रियों का डेपुटेशन लाट साहय के पास लेजाना चाहती हूँ।" "वह ढेपुटेशन क्या कहेगा?" "यह कहेगा-यदि यह वीर भाई, अपनी बहनों की सा न करता, वो मानून का उन अयलाओं को क्या सहारा था । कानून के रहते कितने पाप, दुनियाँ में होरहे है, फिर क्यों कानून के नाम पर वीर पुरुष को एक सत्कर्म के लिये दण्ड दिया जारहा है?" राय बहादुर साहय हंस पड़े। उन्होंने कहा-"तेरा साहस तो यथेष्ट है, पर तेरी सहायता कौन करेगा ?" 'प्रकाश की माता पीछे खदी-खड़ी सब सुन रही थी। "उन्होंने धागे बढ़कर कहा-"मैं सहायता फरूंगी।" सुशीला ने पीछे फिरकर देखा, और यह वृद्धा के चरणों में लोट गई । वृद्धा ने उसे उठाफर छाती से लगाया, और कहा- "बेटी, हम लोग यिना प्रकाश को छुड़ाये घर नहीं लौटेंगी।" रायबहादुर साहब कुछ समय गम्भीर होकर देखते रहे । फिर घर जाफर परामर्श किया । रायबहादुर साहव तो नौकरी पर लौट गये, पर गृहिणी और सुशीला वहीं रह गई। उन्होंने मुहल्ले- मुहल्ले में घूमकर भान्दोलन करना, और सुशिक्षिता स्त्रियों का एक संघ बनाना प्रारम्भ किया । प्रखबारों में भी काफी आन्दोलन उठा । एक दिन तीन हजार स्त्रियों की एक सेना हाय