उन्तालीसवाँ परिच्छेद कुछ लोग सीधे-साधे गौ की भौति रहा करते हैं। पर वास्तव में वे सीधे नहीं होते, कमीने होते है। भात्म-सम्मान उनमें होता ही नहीं, विवेक और प्रतिष्ठा से भी उन्हें कोई सरो- कार नहीं होता। वे बहुधा टुकड़े के कुत्ते होते हैं, और पेट के लिये अच्छा-बुरा समी-कुछ कर गुजरते हैं। उनका धर्म पेट ही होता है। गोपी ऐसा ही भादमी था। इसकी उन्न ३५ के बग- भग होगी। विवकुत सूखचिढ़ी, मुर्दार सी सूरत, मैले कपड़े और गन्दे दांत, घिनौनी बेतरतीय मूई, चुन्धी आँखें, बढ़े हुए मैले सिर के बान, उन पर एक पुरानी वाहियात टोपी उस व्यकि के नगण्य व्यक्तित्व का परिचय दे रही थी। यह भादमी वास्तव में कुर्रम ण । क्या भाप जानते हैं, कुर्रम कौन होते हैं ? दिल्ली में ये लोग बहुत हैं। कहना चाहिए, इन लोगों को एक नाति की नाति है। इनका पेशा भले घर की बहू-बेटियों को इधर-उधर बहों पर ले माना, और वहाँ लुच्चे-लफंगों को पहुँचाना है । गोपी याह्मण या, पदा-निखा भी या । उसका पिता शहर का एक मनामानस नागरिक है, पर दो वर्ष से यह व्यक्ति घर से बाहर है। प्रथम घेश्या-गमन की भादत परने से यह युवक पढ़ने से रह गया । सर्च की तंगी से घर की
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