पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२४६

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२४० अमर अभिलाषा "यह तो बात ही दूसरी होगई !" "पर इसकी पारमा वही है।" "मैं इसे स्वीकार करता हूँ।" "कानून का यह भी घभिप्राय होना चाहिये, कि वह नीति के विरुद्ध न हो।" "अवश्य ।" "तब हम लोग प्रकाशचन्द्र के लिये रिहाई की प्रार्थना करती है।" "किस आधार पर " "उसने नीति के विरुद्ध कोई काम नहीं किया।" "परन्तु व्यवस्था और कानून के विरुद्ध...?" "कानून तो अपूर्ण है, यह पाप अभी कह चुके हैं !" "फिर भी उसका पालन जरूरी है।" "वहीं तक, नहीं तक नीति के विरुद्ध न हो।" "इसमें नीति-विरुद्ध क्या हुआ ?" "एक ऐसा व्यक्ति, जो नीति की मर्यादा को पालन करता' हुमा दण्डित हो-वह नीति-विरुद्ध हुआ।" और भी वाद-विवाद के बाद गवर्नर ने महिला मण्डल को विचार करने का आश्वासन दिया, ' और इस घटना के 'मास बाद प्रकाश की जेल से रिहाई होगई ।