सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उपन्यास २४३ . भोले-भाले युवक को उसने फांसा-'चलिये यावूनी, एक बहुत बदिया घरेलू चीज़ दिखाउँ; सिर्फ़ अठमी का खर्च है, पसन्द न हो चले भाइयेगा।' बाबू साहब साय होलिये । वह किसी गली में एक अंधेरे ठिकाने पर लेगया। अठन्नी वसूल की।--"आप जरा यहीं खड़े रहें।" कहकर एक घर में घुस गया। क्षण भर बाद बाहर प्राकर कहा-"एक मिनट यहीं ठहरिये, मैं भी बुला जाता हूँ।" वह रफूचक्कर हुआ।भव भापकी जब तक ववियत हो, खड़े रहिये, वह तो भव थाने का नहीं। अस्तु, यही गोपी बसन्ती के पास बैठा था। ठण्ड काफी थी, बसन्ती चौकी पर पैर फैलाए बैठी, मजे से आग ताप रही थी । उसने एक रेशमी दुलाई बदन पर लपेटी हुई थी। वह पान चबा रही थी, और इतरा-इतराकर उस घृणित युवक से बातें कर रही थी। वह बात-बात पर कस्मै खाता था, मिलतें करता था, हाय नोड़ता था। वसन्ती एक-रस उसकी सय भाव-भंगी सुन रही थी, वह उसी पर प्रकट किया चाहती यो, कि वह उसे धोर घृणा करती है। उसने अव एफ अँगड़ाई लेते-लेते कहा-"अच्छा, अव चन, लम्बा बन, उनके आने का यात होरहा है । मगर याद रख, पेरेनौर को यहाँ लाने का काम हँसता था, गोपी ने हाथ जोड़कर कहा-"भगवान् की कसम, गरीकों से ही वास्ता. रखता हूँ। वे मुसलमान हैं तो क्या है, मगर एकही रईसजादे हैं।"