पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७६ अमर अमिलापा नारायणी भगवती से लिपटकर रोने लगी। भगवता भी बहन से लिपटकर रो उठी। छियालीसवाँ परिच्छेद अगरह घण्टे तक भूखी-प्यासी मालती उस कोठरी में वन्द पढ़ी रही। इस बीच में वह एक बार तो अच्छी तरह सो भी ली। उसने इस असीम विपत्ति से अपना उद्धार करने के लिये पूरी मुस्तैदी से तैयारी कर ली थी। उसकी श्रात्मा की दुर्वलता भाग गई थी, और उसमें सिंह की भाँति पराक्रम का उदय हो- गया था। जव प्रथम बार अधिष्ठातानी दर्वाजा खोलकर उसके कमरे में घुसे, तव वह अचानक ही सिहिनी की भाँति उछलकर उनके ऊपर टूट पड़ी। अधिष्ठातानी ने इसकी कल्पना भी न की थी। वे भरभराकर गिर पड़े। मालती ने इस पर तनिक भी ध्यान न कर, उन्हें लातों और चूंसों से कुचलना शुरू कर दिया। अधि- छावाजी 'हाय-हाय' करने लगे। आश्रम में हल-चल मच गई। देवीनी नीचे भागकर चिल्लाने लगी। मालती ने अवसर पाकर भीतर का कुण्डा बन्द कर दिया, और बिस्तरे की चादर से अधि- छावानी को बुरी तरह लपेटकर याँध दिया। वे इतने विवश होगये, कि न तो उठ सकते थे, न बचाव कर सकते थे | माजती