उपन्यास साहेय एक सारामपुसी पर पड़े, सय प्रबन्ध की देख-माल कर रहे हैं। प्रकाश को पलक-मारने की फुर्सत नहीं। वह इधर-से-उधर, उधर-से-उधर दौड़े फिर रहे है । याला विनती की रोशनी और असत्य रंग-बिरंगी माण्डियाँ से लक-दक हो रहा है। हार पर शहनाई बज रही है । एक व्यक्ति ने रायबहादुर महाशय के पास धाकर कहा- "पारात आपहुंची-लय को यथा-स्थान टहरा दिया है। मोतन भी पहुंच गया है, श्यया शाज्ञा?" "पलंग, मेज, कुसी, फन, नौकर सभी तो टीकधीक होगये न?" "एपदम लय प्रबन्ध ठीक-ठीक होगया।" "बारात की पदत कर होगी?" "५ घने बदन का समय रखा है। पुलिस कमिश्नर स्वयं ४० धुहसकारों सहित पत में नाप रहेंगे।" "धौर क्या-क्या सवारियां दीफ की गई है?" " हायी, २० घोडे, ६ मियाने, ५० पग्वीरमटम ।" "पाजे फा क्या हा?" "मौनी गाना धारहा है । यारात के साथ भी याना है।" "बहुत ठीफ! भय आप जरा उधर फिर चले लाइये, और सय प्रबन्ध उन्हें समझायर उनकी और क्या श्राज्ञा है, यह पृछते भाइये । और उसी के अनुकुल प्रपन्ध भी कर दीजिये। नाइये- मोटर लेजाइये, मैं इन नरम ने निश्चिन्त रहा।" 10
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