पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/३२७

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पन्यास 1 उँगली रखकर अपना कौतूहल प्रकट कर रही थीं। पर कुछ ऐसे भी थे, जो उस विवाह को बहुत अच्छा कहकर इन उपद्व- कारियों का तिरस्कार कर रहे थे। इधर तो यह होरहा था, उधर ब्राह्मण मण्डली में अनब गुल खिल रहा था। पास-पड़ोस के सभी ब्राह्मण विना-ही बुलाये छज्जू मिस्सर के घर धरना दिये बैठे थे । मलाह यह होरही थी, कि यदि जयनारायण बुलावे, तो जीमने को जाना चाहिये या नहीं । इस नएडनी में प्रायः सभी भोजन-भत थे । लव चुपचाप बैठे, एक दूसरे का मुँह ताक रहे थे क्योंकि ऐसी-ऐसी उग्दा तैयारियां -लह, कचौरी, रायता छोड़ना क्या साधारण यात है ? पर ऐसे अधर्मी के घर ज्या भोजन जीमा जा सकता है, जिसने बेटी का पुनाह करके लोक ही को उलट दिया। जिसकी एक बेटी बदनाम हो चुकी, बो नात से गिर गया, उसके यहाँ ये पवित्र अग्नि-मुख-शर्मा कैसे भोजन करें ? पर लड्डू, कचौरी, खुर्मा, हलुथा यह सब क्या छोड़ने की चीजें हैं ? साँप, छछुन्दर की-सी गति थी न छोड़ते बनता था, न खाते । एक तरफ, हुँथा एक तरफ़ खाई, बेचारे ब्राह्मण किधर जायें ? तिस पर तुर्रा यह, कि घृत की लपट चली श्रारही थी, और भूख पद-पद पर बढ़ रही थी । एक और आफत थी, कि चार-छः कोस चलकर आये है । अब पर लौटेंगे, तो ब्राह्मणी कहेगी कि क्या लाये ? यह एक तो बिना पेटूदास कहे बात ही न करती थी, भव की तो चूल्हे की लकड़ी का ही प्रयोग करेगी; क्योंकि महाराज कई