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पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/३३९

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उपन्यास . "परन्तु उम में इन्द्रिम-वासना भी तो है।" "उसे मैंने जीत लिया है, और यही मेरी तृप्ति का विषय है।" "परन्तु पुनर्विवाह तो शास्त्र से सिद्ध है।" "मैं इस पर विचार ही नहीं किया चाहती। जिनके हृदय हो, तिनकी वासना प्रबल हो, वे उस शान-वचन से काम लें।" "परन्नु पुष्प का अस्तिच फिमलिय" "वह विलास की सजावट में भी कान पाते हैं, और देव- पूजा ने भी।" "पान्नु पुसुद, स्सा तुम उसी प्रकार पति को निकट देखती हो, जैसे जोयित अवस्या में देखती थीं ? "यिकल उसी प्रकार ।" "इन्हीं चन-चत्रुधों से ?" "इन्वर क्या धनं-चतुओं से देखा जाता है ?" "वह थाना का विषय है।" "नो ज्ञान का प्रकरण है, वह सदा ही मान्मा का विषय है। उसमें नितनी वासना कम हो, उतना उत्त्मा" "तब विधवा-शब्द क्या हिन्दू जाति पर शाप नहीं ?" "वह हिन्दू-जाति का भूपण है, और संसार की किसी जाति में ऐसी पवित्रता और त्याग के गम्भीर भयों से परिपूर्ण शन्द ही नहीं।" "परन्तु बलात्कार से त्याग?"