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पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/३४४

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उपसंहार . नगर श्रवसन या रात यद्यपि चाँदनी थी, पर मौसम सदी का था। यद्यपि अभी नौ ही पजे थे, परन्तु सरकों पर सनाटा था। ऐसे ही समय पागलनाने के प्रत्पताल में एक गन्दी और दुर्गन्धित कोठरी में एक हदयद्रावक करण दस्च हो रहा था। उस फोरी में उसी के अनुरूप खटिया पर वैसे ही पत्र प्रोढ़े अभाभिगी भगवती अपनी अन्तिम यात्रा के लिये जद- पटु सम्हाल दी थी। यात्रा बहुत बड़ी थी, और वह इस लोक से परलोक तक थी । इसलिये उसकी तैयारियां भी वैसी ही थीं। वह कितनी भारी थी, कितनी भीषण थीं, इसके देखने का कोई साधन प्रत्यक्ष तो था नहीं-हाँ, मन के उद्वेग, बेहोशी की वफबाद, हृदय की धड़कन और सर्वात कम्प को देखकर उस भीपण तैयारी का कुछ अनुमान हो सकता था। रह-रहकर उसके.