पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/४६

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अमर अभिलाषा के नहीं हुए। एमी बात पर दोनों ने फहानियाँ मुना सुनाकर 'अपनी-अपनी यात की मगाई दिपाई है।" चन्पा ने अचरज से रोदी पर हाय रसकर फहा-"घटा! ऐसी-ऐसी बातें लिमो है-देखू !" फहफर घन्पा पुस्तक हाय में लेफर पसे टलटने लगी। फिर बोली-"तो इस फिताब में देर- देखकर मुझे फैसे मालूम हो साता है कि यह यात तोते ने कही और यह मैना ने पही?" "हरा पहचानकर पद लेते है-नमें एक पहचानने पाबायें, तो तू भी पदने लगे।" चम्पा ने जन्दी में फहा-"तो फिर नीता फौन ? मई घेईमान रहे, या औरत ?" "अभी वो मैं पढ़ ही रही है, पीछे यह यात खुलेगी।" "या तो थी बन्छी फिनाव है। इस फिवाय फो नम मुझे दो दो। मैं भान रात को 'उन्हें' दिशाऊँगी, चै तो सूप पदना जानते हैं-देखें, नदी फी पुराई पदफ्न क्या कहते हैं।" भगवती ने सनिफ रसिकता से कहा-"क्यों? मदों की दुराई तुमे बदी भाती हैं। "फिर इसमें मेरा दोप ही क्या है ? मदों ने हमारे लिये कैसे बन्धन धौर रोक लगा रखने हैं और पार भागे नाय न पीछे पगहा।" भगवती ने कुछ गम्भीर बनकर कहा-"तू ही नाने बहिन ! मदों से तेरा ही पाला पड़ा है।"