पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/५७

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उपन्यास ५७ कुछ नहीं है। अगर मजदूरी न करूंगी, तो भरपाई कैसे होगी? आप कृपा कर, मुझे कमीज़े सीने दीजियेगा फल कट करके एक कमीज़ दे जाइयेगा।" युवक स्थिर न रह सका । उसने जरा धागे बढ़कर कहा- "क्या कहा? वे दो रुपये रखे हैं ! तुमने उन्हें खर्च नहीं किया? अच्छा यतायो, अ.ज तुमने खाया क्या है ? बताओ- जल्दी बतायो।" बालिका कहती क्या ? क्या मूठ बोलती? अपने कृपालु उद्धारक के सामने यह सम्भव ही न था, फिर च्या सत्य कहती कि तीन दिन से अन्न का दाना उसके मुख में नहीं गया है ? ना, यह सम्भव न था । वह चुपचाप खड़ी धरती को देखती रही। युवक ने और जरा भागे बदकर कहा-'सुशीला!" वालिका धरती की ओर देखती रही। युवक ने फिर कहा-"सुशीला ! वहन !" वालिका ने दृष्टि उठाई। उसकी आँखों से दो बूँद आँसू उपक गये। युवक ने लपककर उसका हाथ पकड़ लिया । उसने कहा-"मेरी श्रमागिनी गरीव यहन, तुन्हें ईश्वर की सौगन्ध है, कब से भूखी है ?" सुशीला की आँखों से आँसू बह चले। वह बोल ही न सकी। युवक ने कहा-"तेरे होंठ सूख रहे हैं, शरीर काँप रहा है, रंग पीला हो रहा है। सच योल-तैने कब से नहीं खाया? तुझे बताना पड़ेगा-तुझे मेरी कसम""