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पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/६७

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उपन्यास Fus "उन्हें किसी की सुनने की फुरसत ही कहाँ है ? पहले पास दौसी और याप-बेटों की सलाह सतम होजाय, तब न? राम चाने कहाँ के किले माह करते हैं।" "इसनी देर ही में सुमने ऐसी तम्मी-चौड़ी बातें कह दी-पर मसन पाव तो रह गई । ननद-भावजों में लदाई हुई मालूम शेती है ! बाते-गाते इतना कह गमा या, कि मिलकर रहना- भगवती से बदना नहीं।" हरदेई की आँखों में धांसू भर पाये। उन्हें बाँधन से पॉप- बरबह कहने लगी- "तुम्हारे घर में सव सुध-धोये हैं-जड़ाका वो एक में ही फिर सुम मुमे यहाँ से निकान क्यों नहीं देते ? सबेरे ही पन्नू मिस्सर को बुलायो, मैं तो अपने बाप के यहाँ स्त्री पाऊँगी तब अपनी भोली-भाली यहनों को लेकर रहना । पस, भाँव फूटी, पीर गई । रोज की मक-भक तो न रहेगी।" "सस्ने छूटे। नहर में ही रहना था, तो तुमने ब्याह क्यों किया। मजे से वहीं रहतीं न!" "य्याह के लिये खुशामद किसने की थी? तुम्ही न लूलू का साँग बनाकर हमारे द्वार पर गये थे?" इस ब्लू के स्वांग की बात पर हरनारायस को क्रोध आते- माये हसी भागई ! उसी इसी में वे बोले- "खूब पार रक्खी भई, यह स्वांग की बात तो । (हाय, ) भव चलो, रहने दो-मिज़ान पडाको। भादमी