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हिन्दू-समाज के शरीर में आज अनेक घृणित रोग-कुरी- तियों का निवास है। विधवा-तत्व तो आज हमारी समाज की सब से भयङ्कर समस्या बनी हुई है। हिन्दुओं की नालायकी और विधवा-तत्व के अनर्थकारी विश्लेषण ने आज समान के एक अत्यन्त आवश्यक अङ्क को बेकाम कर दिया है। हमारे समाज की गन्दी पाक-स्थली में आज इस कुरीति ने मवाद बनकर ऐसा भयङ्कर अनर्थ उत्पन कर दिया है, जिससे आज हम एक सार्वदेशिक अशान्ति और पतन का अनुभव कर रहे हैं।
आज हिन्दू-समाज में करोड़ों विधवायें हैं। इन असंख्य
मूर्तियों की हा-हाकार के परिणाम से कोई समझदार आदमी
अनभिज्ञ नहीं। इन सब के दुर्भाग्य का भिन्न-भिन्न कारण है,
और इनके पतन या विकास का साधन भो भिन्न-भिन्न है।
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक-महोदय ने अपने वैयक्तिक अनुभव के
आधार पर ऐसी ही कुछ भाग्य-हीना बालिकाओं के चित्र
एकत्रित किये हैं। यहाँ आपको भगवती का विवशतापूर्ण
अधःपतन भी मिलेगा, और कुमुद के स्त्रीत्व-तेज का दर्शन
भी होगा। वसन्ती के रोमाञ्चकारी जीवन का चित्र भी आप
इन्हीं पृष्टों में देख पायेंगे, और सुशीला तथा मालती का