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भेजने आरम्भ कर दिये, कि इसे तुरन्त पुस्तकाकार प्रकाशित
कर दिया जाय। इसीलिये 'चित्रपट' में परी अपने से पूर्व-ही
हमें इसे पुस्तकाकार प्रकाशित करना पड़ा। पुस्तक तैयार
होने के प्रायः तीन सप्ताह पूर्व हमने इस पुस्तक का विज्ञापन
'चित्रपट' में आरम्भ कर दिया था, और इस अल्प-काल में-ही
इसके प्रायः चार-सौ ऑर्डर और एक हज़ार के लगभग
जिज्ञासा-पत्र (Enquiries) प्राप्त हुए। स्त्री-समाज में इस
पुस्तक का अधिक आदर हुआ। 'चित्रपट' में छपते-छपते हमारे
पास अनेक ऐसी महिलाओं के पत्र आये, जो प्रति सप्ताह उसे अपने
परिचित स्त्री-मण्डल में पढ़कर सुनाया करती थीं। अपनी इन
कृपालु पाठिकाओं के प्रति कृतज्ञ होते हुए, हम इस पुस्तक की
सफलता पर गर्व का अनुभव करते हैं।
पुस्तक काफ़ी पहले लिखी जाने पर भी लेखक-महोदय की सब से ताज़ी रचना है। इस ताज़गी का अनुभव आप उसके एक-एक पन्ने पर कर पायेंगे। इसका कारण यह है, कि छपने के पूर्व लेखक-महोदय ने ध्यानपूर्वक समस्त पाणडु-लिपि का पुनर्पाठ और संशोधन किया हैं। अनेक स्थलों पर उन्होंने कुछ अंश घटाये-बढ़ाये भी है। हमारी समझ में, इस परिश्रम के पश्चात् पुस्तक सर्वथा निर्दोष और प्रशंसनीय बन गई है।