पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/७१

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छान्यास ७१ ALL कोई दया करता है ! संसार में सब तुम-सी सुहागिन भर रही हरदेई र में श्राफर कुछ कहना चाहती थी, कि हरनारायण ने उपटकर कहा-"चुप रहो-च-दक करके मेरा दिमाग़ मत सपायो । जरा मोने दो। चीन दिन से फमर नहीं मुकी है। हटो परे हो-फलहनी कहीं की !" माविनी हरदेई अपने पति का यह फटु विरस्कार न सह सकी। वह वहीं बैन हजुर-टुसुर रोने लगी। हरनारायण भी साट पर पीठ फेरकर पड़ रहे । क्या जाने, नोंद से उनकी . कैसी पटी। roinnt नवाँ परिच्छेद इस परिच्छेद में हम संप से पाठकों को वयनारायण की स्थिति का परिचय देते हैं । जयनारायण की अवस्या ५० वर्ष को पार कर गई थी। जय इनके पढ़ने के दिन थे, तप इनके गाँव में विधा का वैसा चमत्कार था, और न पढ़ने का सुभीता ही था। फिर भी इन्होंने किसी तरह से पास के वहसीली स्कूल से उद् मिढिल पास करके पटवारगिरी का इन्तहान दिया। दो बार फेल होकर पास हुए, और ) रु. पर यहाल हुए। भय उन्हें १२) मिलते हैं, पर पटवारियों को तो पाटक ब्रानते ही हैं।