७२ अमर अमिलापा ऐसी-ऐसी तो बारह तनयाह दिन मिलते-मिलते कितनी बार जेव में पहुँच जाती हैं। जो हो, पर फिर भी बयनारायण मला मनुष्य और सरल वृत्ति का श्रादमी था। उसकी बोल-चाल, व्यवहार सव में शराफ़त और खरापन था। यद्यपि यह पुरानी जकीर का 'फकीर था, पर एकदम अन्ध-विश्वासी न था। बाति-विरादरी के प्रवाह में पढ़कर सब काम करता अवश्य था, पर मन में ताक रखता था । वही लड़की के विधवा होनाने पर उसकी इच्छा छोटी लदकी की शादी देर से करने की थी, पर उसफी स्त्री ने हठ करके विरादरी और धर्म-आदि का भय दिखाकर अपनी बात रखी । अन्त में उसको व्याह करना ही पड़ा । पर खेद की वात है, कि वेचारे पर सात महीने में ही बन टूट पड़ा । इस सदमे से उसे भयङ्कर काट, और धारम-ग्लानि हुई । उसकी यह कन्या भयन्त प्यारी थी, पर पान वह यह चाइने भगा, कि यह अभागिनी मर स्यों गई? उसकी गृहस्थी नैसी छोटी थी, और जैसा उसे श्रामदनी का सुभीता था, उससे वैसा कोई कष्ट न था। तिस पर वह हर बात में ध्यानपूर्वक खर्च करता था, इससे उसे पैसे का भी प्रभाव न होता. या। इसके सिवा ४५) २० उसका लड़का उन्नय पाता था। इस प्रकार उन्हें वैसा अर्थ-कष्ट व था, पर दोनों कन्याओं को मन्म-मर खिलाने की बात याद करके कमी-कभी वह भत्यन्त पञ्चल हो रटता था। जमाने का रंग-ढंग देखकर और सय तरह की ऊँच-नीच विचारकर वह कुछ उत्तेजित होता, और साहस भी
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