सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उपन्यास - AV ज्वालामय नेत्रों से देखते हुए कहा--- "फहिये तो सही, इन सब घटनायों में पूर्व जन्म का दोप है, या शापका ?-और अब भी उसकी दशा यदल देना थापके हायम है, या मान्य के?-उसके. विधावा, उसकी किस्मत के लिखनेवाले श्राप हैं, या और कोई " जयनारायण से न रहा गया। उन्होंने पागलों की सरह विरलाकर कहा-"मैं सचमुच मैं ही हूँ। मैं पिशाचों का पिशाच, और फसाइयों से भी जालिम हूँ। अपनी प्यारी बेटी को मैंने ही दुवोमा है। हाय !"-इतना कहकर वह फिर रोने खगे। . रामचन्द्र फिर कहने लगे-"यदि थापको उसकी चोर विपत्ति में सहानुभूति प्रकट करनी है, उसकी कष्ट की बेटी काटनी मन्ज़र है, तो फिर से उसका विवाह कर डालिये, और देखिये, कि इसके पूर्वजन्म के संस्कार भाग जाते हैं, और भापको स्वतन्त्रता से काम करने का अवसर मिल जाता है। यदि आप अपनी पुत्री का विवाह यचपन में न करके, जवान होने पर करते, फिर देखते फि परेत और नाई की घटकल, और ज्योतिषियों की कुण्डली और भाग्य का फेर टीक बैठता है, या आपका कर्म जयनारायण ने अन्यन्त कातर रष्टि से उनकी ओर देखते- देखते कहा-"यह सब क्या सम्भव है ? रामचन्द्र यावू ! मुझ अकेले की जान पर बीतेगी, तो नर्क की भयानक भाग में भी