पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अमर अभिलापा उनकी स्त्री उन्हें देखकर डर गयी थी-टसने भयभीत होकर कहा-"दिना मतलय क्यों अपने चापको गालियां दे रहे हो? तुम क्या उसे जहर देकर मारने गये थे। अच्छा, सुन्दर, तन्दुरुस्त लड़का देखकर ही वो व्याह किया था। भग.........." यात काटकर जयनारायण बोले-"वस करो, फिर भगवान् का नाम । यह क्या? सत्यानाशी व्याह ही क्या हमारा कम पाप है ? इस व्याह को मरके ही घोर पाप की टोफरी सिर पर लादी है।" अब गृहिनी ने माया ठोककर कहा-"हाय वन्दीर ! इनकी बात सुनो । अपने बेटे-बेटियों का ब्याह फरना पाप है, तो सारा संसार व्याह करके पाप फमा रहा है ?" जयनारायण क्रोधित होकर बोल-"अरी फम समझ ! सारे संसार की तुझे खयर ही क्या है ? संसार ऐसा मूर्स नहीं है। न्याह वो सभी करते हैं, पर व्याह के वक्त पर करते हैं-दुधमुहीं लड़कियों के गले में फांसी नहीं डाल देते।" स्त्री ने अचरन में थाफर पूला-"व्याह का समय और कौन-सा होता है। "जवान उम्र में, जब लड़के लड़की घर-गृहस्थी के योग्य हो नाय, तभी व्याह करना चाहिये ।" स्त्री ने असन्तोष से मुँह बनाकर कहा-"लवान उम्र में विवाह करके विधवा नहीं होती ?" "होती क्यों नहीं ? कम होती है।"