ग्यारहवाँ परिच्छेद जिस समय हरनारायण के कमरे में उपरोक्त घटना घट रही थी, उसी समय नारायणी के कमरे में १॥ वर्ष का विछड़ा पिता अपनी रोगिणी पुत्री को देख रहा था। जिस समय नयनारायण उसकी कोठरी में घुसा, वव नारायणी सो रही थी। जयनारायण चुपचाप पुत्री का मुंह निहारने लगा। देखते-देखते उसका सिर घूमने लगा, आँखें धुंधली होगई, और उससे खड़ा न रहा गया । वह वहीं चार- पाई की पट्टी पर बैठ गया। वह छोटी-सी मासूम बच्ची कैसी होगई थी! बाल विखरे पड़े हैं, मुँह पीना पड़ गया। आँखें माये में धस गई हैं, गालों की हड्डियाँ निकल पाई हैं, और पसलियों की हड्डी-हड्डी चमक रही है । जयनारायण ने एक ठण्डी साँस के साथ दो बूंद आँसू गिराये। फिर उसने कन्या के माथे पर हाथ रखा। देखा, वह भाग की तरह तप रहा है। स्पर्श होते ही कन्या नाग उठी, और एक बार पिता को गौर से देखते ही कुछ कहने को मुँह खोला ही था कि खाँसी के मारे छटपटाने लगी। खाँसी, दुर्बल रोगी, और चीन ज्वर-यह सब एक शरीर में निसने देखा है वही, उस छटपटाहट की वेदना का अनुमान कर सकता है। बयनारायण 1
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