अमर अमिलापा "प्रातिर मालुम भी तो हो।" "वह गौना होकर या रही है।" "किसकी गोनिहाई बहू ?" "मानसिंह के बेटे की।" "ना, मैं तो ना नाऊँगी। तु ना।" "चलेगी भी, या मिज़ान ही दिखाये नायेगी?" "माँ नाराज़ होगी।" "मैं उससे पूछ लेती हूँ।" "ना, मेरा ती नहीं करता।" चम्पा ने एक न सुनी वह तुरन्त गृहिणी के पास धाज्ञा लेने को पहुंची । कार्य बहुत कठिन नहीं था, साधारर नान करने पर वृद्धा राजी होगई। चपा ने भाकर कहा- "चल, अब तेरी नों ने भी कह दिया।" "ना-ना, मैं न जाऊँगी; मेरा नी नहीं करता ।" "देख भगवती, बड़ी जिहन होगई है, मैं तेरे पास फटकूपी भी नहीं। मैं तो इतनी दूर से आई हूँ संग लेने, यह नखरे ही किये बाती है । ऐसा भी च्या श्रादमी!" श्रव की बार चम्पा की दवा कारगर हुई। उसे नाराज हुई. नानकर भगवती टठकर उसके गले से लिपटकर बोली- "घच्छा-अच्छा, चलती हूँ। तु है बड़ी खराब ! बात-बात में नाराज हो जाती है। अच्छा, रहर, मैं कपड़े पहन लूं।" चन्पा मुँह फुलाये खड़ी रही। उसने सोचा, नो औषधि और
पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/९६
दिखावट