सातवाँ अध्याय।
(ख) शिशुनाक, नन्द, मौर्य और शुङ्गवंशी राजा।
शिशुनाक—अयोध्या में शिशुनाक वंशी राजाओं के शासन का प्रमाण बहुत ही सूक्ष्म है परन्तु इसको छोड़ना उचित नहीं। अवध गजेटियर जिल्द १ पृष्ठ १० में मणिपर्वत के वर्णन में लिखा है:—
मगध का राजा नन्दवर्द्धन-महाराज मानसिंह ने हमको बार-बार विश्वास दिलाया है कि इसी शताब्दी में इसी टोले में एक शिला लेख गड़ा हुआ मिला था। उसमें लिखा था कि यहाँ किसी समय में राजा नन्दवर्द्धन का राज था और उसी ने यह स्तूप बनवाया था। महाराज ने यह भी कहा था कि बादशाह नसीरुद्दीन के समय में यह शिला लेख लखनऊ भेजा गया था और शाहगंज में इसकी एक नकल भी थी परन्तु न मूल का पता लगा न नक़ल का।
उसी की टिप्पणी में यह लिखा है:—
इसके पीछे अयोध्या के विद्वान् पण्डित उमादत्त ने इस कथन का समर्थन किया और यह कहा कि हमने तीस, चालीस वर्ष हुये इस शिला लेख का अनुवाद किया था। उसकी प्रतिलिपि भी खो गई और वे यह नहीं बता सकते कि इसमें क्या लिखा था।
महाराज मानसिंह या पण्डित उमादत्त जी (पण्डित उमापति त्रिपाठी) की बातों को विश्वास न करने का कोई कारण नहीं है। हमारे लड़कपन में पण्डित जी श्री अवध के एक प्रसिद्ध महात्मा थे और न महाराज को और न उनको झूठी बात कहने का कोई प्रयोजन हो सकता है, विशेष करके जब नन्दवर्द्धन के विषय में यह बात प्रसिद्ध है कि उसने अयोध्या में सनातन धर्म को नष्ट करके एक वर्णहीन धर्म स्थापित