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अयोध्या का इतिहास
को मार डाला । केवल एक स्त्री भाग कर एक चमार के घर में छिपी।
वह स्त्री गर्भवती थी। चमार उसे दूलापूर ले गया । दूलापूर के
जमींदार की स्त्री का मैका उसी गाँव में था जहाँ की वह ब्राह्मणी थी।
इस कारण जमींदार ने उसको मैके पहुँचा दिया। मैके में ब्राह्मणी के
जोड़िया लड़के पैदा हुये। एक का नाम मधुसूदन और दूसरे का टिकमन
पाठक था । जब दोनों भाई सयाने हुये तो अपनी पुरानी जमींदारी
लेने की उनको चिन्ता हुई और दूलापूर आये। दूलापूर के जमींदार
ने उनसे सारा ब्यौरा कहा और रात को उन्हें मझवारी ले जाकर सारा
गाँव दिखाया । यहाँ उनको वह चमार भी मिला जिसके घर में उनकी
माता ने शरण ली थी। तब दोनों भाई दिल्ली पहुंचे और बादशाह
औरंगजेब से फरयाद की। बादशाह ने उन्हें मझवारी गाँव के अतिरिक्त
९९ गाँव और दिये और उनको चौधरी को उपाधि देकर अपने देश को
लौटा दिया ।
महाराजा मानसिंह के पूर्वपुरषों का फ़ैज़ाबाद के ज़िले में
पलिया गाँव में आना
जब मुर्शिदाबाद के हाकिम नवाब कासिम अलीखाँ ने शाहाबाद जिले
को अपने शासन में कर लिया उस समय उनके अत्याचार से मझवारी
की ज़िमीदारी नष्ट होगई और महाराज मानसिंह के प्रपितामह अपना
देश छोड़ कर गोरखपुर के जिले में बिडहल के पास नरहर गाँव में
जाकर बसे । उनके बेटे गोपाल पाठक ने अपने बेटे पुरन्दर राम पाठक
का विवाह पलिया गाँव के गङ्गाराम मिश्र की बेटी के साथ कर दिया
और पलिया में आकर बस गये।
पुरन्दर राम जी के ५ बेटे थे, ओरी, शिवदीन, दर्शन इन्छा और
देवीप्रसाद । श्रोरी ने १४ वर्ष की अवस्था में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के
रिसाले में नौकरी करली और लार्ड कार्नवलिस के साथ कई लड़ाइयों
पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१९८
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